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बुधवार, 6 अप्रैल 2016

आज मेरी बारी है ..

         " बेटा कितनी देर और है स्टेशन आने में ? हमें लेने के लिए तेरी दीदी- जीजा जी आ जायेंगे ना ? "
    " हाँ माँ ! आ जायेंगे। अगर नहीं आ पाए तो हम टैक्सी कर लेंगे। "
      " अच्छा कितनी देर लगेगी ! क्या टाइम हुआ है ? "
     " दो घंटे और लगेंगे। अभी दो बजे हैं। "
      माँ बेटे का यह वार्तालाप मैं कई देर से देख -सुन रही हूँ।  माँ बार -बार सवाल कर रही है और बेटा शांत भाव से जवाब दे रहा है। मेरे सामने की सीट पर पिता, माँ और बेटा बैठा है। मेरे बराबर जो बेटा है, उसकी पत्नी और बेटा बैठे हैं। माँ की उम्र ज्यादा तो नहीं है लेकिन शायद उनको भूल जाने की बीमारी है। तभी तो बार -बार सवाल दोहरा रही है।
     " तुम्हारी माँ के इस तरह सवाल करने से तुम परेशान हो जाते हो ना बेटा ? यह तो इसकी हर रोज आदत बन गई है ! " पिता ने बेटे से कहा।
   " नहीं पिताजी ! माँ के इस तरह बार -बार सवाल करने पर मुझे वह कहानी याद आ जाती है जिसमें एक वृद्ध  पिता के बार -बार सवाल करने पर बेटा भड़क जाता है ! मैं सोचता हूँ कि मैंने भी तो माँ को कितना सताया होगा लेकिन माँ  ने मुझे प्यार ही  दिया। आज मेरी बारी है तो मैं क्यों परेशान होऊँ ! बेटे ने प्यार और विनम्रता से  जवाब दिया तो माँ का हाथ स्वतः ही बेटे सर पर चला गया। पिता भी भरी आँखों से प्यार और आशीर्वाद दे रहे थे। मेरा मन भी द्रवित हुआ जा रहा था। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 08/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 266 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  2. संवेदनशील वाकया नही सार है ये जीवन का , जिसे हर कोई जीना चाहता है

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  3. काश...सारे बेटे इस कहान को याद रखें। बहुत सुंदर घटना साझा की आपने।

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