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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

बेटी

           क्या ये बात किसी को भी हास्य प्रद नहीं लगती कि बेटी का जन्म सिर्फ इस लिए होना चाहिए कि हमे बहू  लानी है या संतति आगे बढ़ानी है। सभी यह कहते है कि बेटी होनी चाहिए, पर दूसरे के यहाँ ही।  हम सब शोर तो बहुत मचाते है कि बेटियां है तो जहाँ है या और भी बहुत कुछ।  लेकिन  जब भी किसी के यहाँ पहली संतान लड़की हो और दूसरी संतान के आने की सम्भावना होती है तो सबसे पहले यही प्रश्न होता है कि क्या तुमने चेक करवाया है कि क्या है लड़का या लड़की !
 मैं भी पूछती हूँ ! इस दुनिया  तो नहीं हूँ मैं  और अगर लड़की पैदा हो जाये तो सभी को पता है कि क्या प्रतिक्रिया  होती है ये यहाँ बताने कि जरुरत नहीं है। 
    लेकिन क्या कभी  किसी ने सोचा है कि हम लड़की का जन्म क्यूँ नहीं चाहते ? यहाँ पर हमारे कई जवाब हो सकते है। 
      पर मेरा मानना है सिर्फ एक ही कारण है कि हम बेटी को जन्म क्यूँ नहीं देना चाहते  कि हम दूसरों की बेटियों का मान नहीं रखते ,तो हमारे अवचेतन मन में कहीं ना कहीं ये धारणा तो होती ही है की कहीं हमारी बेटी के साथ भी बुरा ना हो। 
      हम दूसरों की बेटियों को अपने घर में बहू बना कर लाते है तो क्या हमारे मन उनके लिए वही सम्मान होता है जो अपनी बेटी के लिए होता है ! इस बात पर बहुत सारे लोग कहेगे कि  हाँ  ! लेकिन मैं  कहूँगी के  वो मान नहीं होता है।  एक उम्मीद होती है उनसे। 
      जब किसी बेटी के साथ कोई बद सलूकी हो तो हम में से कितने लोग उसका या उसके परिवार का साथ देता है ,कोई भी नहीं देता।  किसी की बेटी जब दहेज़ के लिए सताई जाती है या मार दी जाती है तो कितने लोग बेटी के परिवार का साथ देते है शायद कोई भी नहीं !
        हम ऊपर से ही समस्या का हल ढूंढते है जड़ को ख़त्म नहीं करते। यह तो वैसे ही हुआ ना जैसे कि कोई किसान अपने खेत में खरपतवार को ऊपर से काटता है जड़ से नहीं और वो खरपतवार खेत को ही ख़त्म कर देती है। ऐसा ही शायद हमारा भी होने वाला है अगर हम  नहीं चेते तो। 

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